हम यूँ बिछड़ गए हैं के फिर मिल न सकेंगे
उम्मीद के चराग कभी जल न सकेंगे
क्या जाने किस कसूर की फूलों को सजा दी?
पतझड़ तो क्या, बहार में भी खिल न सकेंगे
कैसी कसम दिलाई है अश्कों को आपने?
चाहा भी तो आंखों से कभी ढल न सकेंगे
बिन आपके फिराक की रातें न कटेंगी
बिन आपके ये हिज्र के दिन ढल न सकेंगे
इस दिल में बनाया है हमने उनका आशियाँ,
वो चाहकर भी घर कभी बदल न सकेंगे
जज़्बात के पौधों को कहीं और लगा दो,
ऐ 'रूह', गम के साए में ये पल न सकेंगे
इस दिल में बनाया है हमने उनका आशियाँ,
जवाब देंहटाएंवो चाहकर भी घर कभी बदल न सकेंगे ...
For me these are d best lines ...
इस दिल में बनाया है हमने उनका आशियाँ,
जवाब देंहटाएंवो चाहकर भी घर कभी बदल न सकेंगे
sahi!