रविवार, 31 मई 2009
रिश्ता
जीवन का रुख मोड़ दिया है
खुशियों की राहें चुन ली हैं
गम का दामन छोड़ दिया है
सूखी सी सुनसान राह को
हल्का सा एक मोड़ दिया है
बादल का चंचल, लहराता
आँचल सर पे ओढ़ दिया है
जबसे उम्मीदें जागी हैं
यास का हाथ मरोड़ दिया है
पतझड़ के साये में पली जो,
उन गलियों को छोड़ दिया है
हर सीमा को लाँघ चुके हैं
हर एक बंधन तोड़ दिया है
भूल चुके सब रिश्ते नाते,
ख़ुद से रिश्ता जोड़ दिया है
प्राणज्योत
हिन्दी भारत की शक्ति है
एक सूत्र में देश पिरोती,
यह जन-जन की अभिव्यक्ति है
हिन्दी भारत के कण-कण में,
हिन्दी भारत के जन-मन में
यह प्रयास हो हिन्दी गूंजे
अखिल विश्व के हर आँगन में
वैभवशाली भरतभूमि की
एक धरोहर है यह भाषा
इसकी गरिमा और बढाएं
हर मन में यही हो अभिलाषा
सूरदास, कबीर, तुलसी की
भक्ति में हिन्दी बहती है
विश्व में सबसे ऊंचा भारत,
भारत में हिन्दी रहती है
संस्कृति से, साहित्य, कला से
भरी हुई जो ओतप्रोत है,
गर्व है हमको इस भाषा पर,
यह भारत की प्राणज्योत है
शनिवार, 30 मई 2009
राज़
इस दिल के कोरे कागज़ पर कुछ लिखना चाहा,
लिख न सके
जो राज़ छुपा तेरी आंखों में, वो पढ़ना चाहा
पढ़ न सके
कुछ देर तुम्हारी राहों में जो बैठे रहे,
फिर चलते बने,
हमने तो मनाया लाख मगर वो बहार के मौसम
रुक न सके
गम की चिंगारी से हमने अपने दिल को
जलते देखा
आंखों में धुआं सा छाने लगा, अश्कों से शोले
बुझ न सके
ऐ 'रूह' तेरी खामोशी ने नाशाद किया,
बर्बाद किया
सब राज़ रहे दिल के दिल में, उनसे हम कुछ भी
कह न सके
तू
हर साज में तेरा नगमा है,
और नाम तेरा हर धड़कन में
हर फूल में तेरा चेहरा है,
और जिक्र तेरा हर गुलशन में
हर गीत में है आवाज तेरी
और तेरी अदाएं सावन में
ये दिन, ये रात, ये कायनात
सब खिलते हैं तेरे आँगन में
जो ख्वाब छुपा है पलकों में
जो खयाल उभरता है मन में
वो तू ही तो है, जिसका जलवा
रोशन है मेरी चितवन में
तेरा ही रूप नजर आए
जब जब मैं देखूँ दर्पण में
कुदरत ने खुशियाँ चुनचुनकर
भर दी हैं मेरे दामन में
शनिवार, 23 मई 2009
बगिया
पंखों में कुछ तीर चुभे हैं
अधरों ने गाना तो चाहा,
पर मन में ही गीत दबे हैं
खिलखिलके हंसना भी चाहा,
मुस्कानों पर लगे हैं ताले,
काँटों की राहों पर चलकर
इन पैरों में पडे हैं छाले
आशाओं के वन्दनवार से
मनका द्वार सजाना चाहा,
अपने लहू से सींच के हमने
ये गुलजार सजाना चाहा
हर आशा को चोट लगी है,
और कलियों को जख्म मिले हैं
हाल न पूछो इस बगिया का,
फूल के बदले शूल खिले हैं
चाहा कुछ था, पाया कुछ है,
किस्मत ने कुछ यूँ लूटा है,
पता नहीं कब हाथ से अपने
खुशियों का दामन छूटा है
मन
नहीं माने, उडे, छू ले नील गगन
जब गंध लुटाती कली खिले,
चले झूम झूम जैसे मस्त पवन
कभी काली घटा जब घिर आए,
मनमोर नाचे आँगन आँगन
बूंदों के संग संग थिरक उठे,
सावन तो है इसका मनभावन
ऋतू आए बसंत, पलाश खिले,
कोयल संग गाये, होके मगन
संध्या की लाली जब छाये,
मन हो उदास, जल भरे नयन
तारों से सजी जो रात आए,
जादू सा जगाये चन्द्रकिरन
सपनों की नगरी में घूमे,
लिए संग कोई प्यारी सी लगन
फिर हरसिंगार की सुबह जगे,
पुलकित हो जाए वन-उपवन
फिर चंचल, अचपल, नटखट मन
नहीं माने, उडे, छू ले नील गगन!
शनिवार, 2 मई 2009
पयाम
मुझको तेरा पयाम मिला है अभी अभी
किस रोशनी से जगमगा रहा है घर मेरा
उम्मीद का चराग जला है अभी अभी
खिलती हुई कली ने मुझे दी है ये ख़बर
दिलका हसीन राज खुला है अभी अभी
राहों में मेरी फूल बिछाए बहार ने
यूँ कोई मेरे साथ चला है अभी अभी
आया है चाँद आसमां से दिल में उतरके
आँखों में तेरा प्यार पला है अभी अभी
ऐ रूह, दिल बिछाके रख सनम की राह में
एक कारवां खुशी का चला है अभी अभी