शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

तेरी दास्तां


ये मेरी कहानी से मिलती हुई है

तेरी दास्तां किसकी लिखी हुई है?


ये मेरा नहीं घर, किसी ग़ैर का है,

यहां की तो हर चीज बदली हुई है!


किनारे पे शायद हुआ उसको धोखा

कि कश्ती भी तूफां से लिपटी हुई है!


नशीली निगाहों ने क्या क्या पिलाया?

नज़र आपकी आज बहकी हुई है


इसे कैसे काबू में लायेगा कोई?

कि सदियों से ये ’रूह’ भटकी हुई है!