ये मेरी कहानी से मिलती हुई है
तेरी दास्तां किसकी लिखी हुई है?
ये मेरा नहीं घर, किसी ग़ैर का है,
यहां की तो हर चीज बदली हुई है!
किनारे पे शायद हुआ उसको धोखा
कि कश्ती भी तूफां से लिपटी हुई है!
नशीली निगाहों ने क्या क्या पिलाया?
नज़र आपकी आज बहकी हुई है
इसे कैसे काबू में लायेगा कोई?
कि सदियों से ये ’रूह’ भटकी हुई है!
मक्ता आवडला.
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