बुधवार, 17 जून 2009

सिला

तुमने कहा कुछ, हमने सुना कुछ
यूंही चला उल्फत का सिला कुछ
दिल ही तो था वो, टूटा होगा,
हम न करेंगे तुमसे गिला कुछ
दोनों ने अपना फ़र्ज़ निभाया,
हमने वफ़ा की, तुमने जफा कुछ!
रोग ये कैसा दिलको लगा है?
काम न कर सकती है दवा कुछ
काश के होश न आए अब तो,
और बढे ये गम का नशा कुछ
नाम तेरा जो आया जुबाँ पर,
ऐसा लगा मांगी है दुआ कुछ!
"रूह" ये रिश्ता कैसे निभेगा?
वो हैं खफा कुछ, हम हैं खफा कुछ!

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