कैसे खिलेगा फूल वो टूटा जो शाख से?
मिल जाएगा वो खाक में, आया है खाक से
रंगीन हैं फिजाएं तुम्हारे विसाल से,
ग़मगीन हैं फिजाएं खयाल-ऐ-फिराक से
मर्जी तेरी है, तू कभी आए के न आए
आवाज दी है हमने तो उठउठके खाक से
हैरत से यूँ न देख हमें गैर नजर से
महफ़िल में तेरी आए हैं हम इत्तेफाक से
नादान है ये, जान भी दे देगा इश्क में,
इस दिल को कभी यूँ न सताना मजाक से
ऐ रूह, उसकी बेरुखी ने जान से मारा,
हम तो गए थे मिलने बड़े इश्तियाक से
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