मंगलवार, 7 अप्रैल 2009

दुआ

देना हो तो ऐसा दे या रब,
हर ग़म की दवा हम बन जाएँ
जो कबूल हो हर एक हालत में,
बस ऐसी दुआ हम बन जाएँ

चाहे मन्दिर हो चाहे मस्जिद हो,
गिरजाघर हो चाहे गुरुद्वारा
जो गूंजे सबके आँगन में,
वो तेरी सदा हम बन जाएँ

हम फूल की खुशबू बन जाएँ,
और बिखर जाएँ हर गुलशन में,
हर जख्म को जो छूकर भर दे,
वो बादेसबा हम बन जाएँ

हमसे न कभी कोई गलती हो,
नफ़रत से हमेशा दूर रहें
जोडे जो दिलों को आपस में,
वो खुदा की अदा हम बन जाएँ

पत्थर न बने हम रस्ते का,
जो चोट किसी को पहुंचाए,
रिश्तों में दरारें न हो जिसमें,
उस घर का पता हम बन जाएँ

ऐ रूह, दुआ हो कबूल तेरी,
दरबार में उसकी इंशा अल्लाह
न कभी भी खता हम बन जाएँ,
न किसीकी सजा हम बन जाएँ

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