शनिवार, 17 अप्रैल 2010

आंसू

हर इक मुस्कराहट के पीछे हैं आंसू
फसल आरजूओं  की सींचे हैं आंसू

ये शबनम के कतरें, ये बरखा की बूँदें,
महल ज़िन्दगी है, दरीचे हैं आंसू

ये चेहरा छुपाता है एक और चेहरा,
हंसी सामने और पीछे हैं आंसू

न देखें कभी ये खुशी को खुशी से,
खुशी में भी आँखों को मीचे हैं आंसू

ये मोती जो बिखरे तो जर्रे बनेंगे,
ये अच्छा है, पलकों के पीछे हैं आंसू!

बता 'रूह' कैसे रहें दूर इनसे?
हम ही से हमें दूर खींचे हैं आंसू!