शनिवार, 17 अप्रैल 2010

आंसू

हर इक मुस्कराहट के पीछे हैं आंसू
फसल आरजूओं  की सींचे हैं आंसू

ये शबनम के कतरें, ये बरखा की बूँदें,
महल ज़िन्दगी है, दरीचे हैं आंसू

ये चेहरा छुपाता है एक और चेहरा,
हंसी सामने और पीछे हैं आंसू

न देखें कभी ये खुशी को खुशी से,
खुशी में भी आँखों को मीचे हैं आंसू

ये मोती जो बिखरे तो जर्रे बनेंगे,
ये अच्छा है, पलकों के पीछे हैं आंसू!

बता 'रूह' कैसे रहें दूर इनसे?
हम ही से हमें दूर खींचे हैं आंसू!

मंगलवार, 2 मार्च 2010

शायद

वो इन्सां नहीं है, फ़रिश्ता है  शायद
मुझे जो मिला, वो मसीहा है शायद

अंधेरे मेरे फिर चमकने लगे हैं,
कोई ख्वाब आँखों से गुजरा है शायद

अभी चाँद को मैंने रोते सुना था,
तुम्हारी तरह वो भी तनहा है शायद

उसे सोचते हैं तो लगता है ये क्यूँ?
जिसे ढूँढते थे, वो ऐसा है शायद

तेरे गेसुओं की घटाओं को छूकर
ये सावन का पैमाना छलका है शायद

वो कहते रहें और सुनते रहें हम,
ये रिश्ता निभाने का नुस्ख़ा है शायद

जो पांवों के छालों में चुभता है अक्सर,
मेरे ख्वाब का कोई टुकड़ा है शायद

उसे 'रूह' का दर्द कैसे दिखेगा?
कि आँखें हैं फिर भी वो अंधा है शायद

रविवार, 31 जनवरी 2010

चाँद

चाँद में कोई प्रीतम देखे, चाँद में कोई सजनी देखे
देखनेवाले जो भी देखे, मुफलिस चाँद में रोटी देखे


चाँद गगन के माथे कि बिंदी, सदियों से जो चमक रही है
चन्द्रकिरन की शीतलता से सजकर धरती दमक रही है
कोई रात को दुल्हन समझे, चाँद में उसकी डोली देखे
देखनेवाले जो भी देखे, मुफलिस चाँद में रोटी देखे


चाँद किसी का राजदुलारा, चाँद किसी की आँख का तारा,
कोई चाँद को भाई समझे, कोई चाँद सी बेटी चाहे,
चाँद से जो भी रिश्ता जोड़ो, चाँद तो जो है, वोही देखे
देखनेवाले जो भी देखे, मुफलिस चाँद में रोटी देखे


चाँद हो आधा या हो पूरा, रोटी की ही याद दिलाये,
खाली पेट कि भूख भला क्या चाँद का दूजा रूप दिखाए?
चाँद के दर पर जाकर चाहे छूकर उसको कोई देखे,
देखनेवाले जो भी देखे, मुफलिस चाँद में रोटी देखे

मंगलवार, 19 जनवरी 2010

दिल का सफ़र




बस हाल ही में दिल ने दिल का सफ़र किया है
मुश्किल बडा था काम ये करना, मगर किया है

कुछ रेत ख़यालों की बिखरी हुई पडी है
बेजान आरजू की दीवार इक खडी है
जज़्बों के झरोखों में मकड़ी ने घर किया है

उम्मीद के महल जो गिरते हि जा रहे हैं
नाकामियों के बादल मंडराते आ रहे हैं
बेबस हवा के बस में सारा शहर किया है

टूटे हुए घरोंदे, रूठी हुई बहारें,
जलती जमीं को घेरे बढती हुई दरारें
अच्छे भले शहर को इक खंडहर किया है

ये दुआ है फिरसे इसकी तकदीर संवर जाए
कि बहार ता-क़यामत इस दिलमें ठहर जाए
मेरे रब, ये बयाबाँ अब उनकी नज़र किया है!!