मंगलवार, 19 जनवरी 2010

दिल का सफ़र




बस हाल ही में दिल ने दिल का सफ़र किया है
मुश्किल बडा था काम ये करना, मगर किया है

कुछ रेत ख़यालों की बिखरी हुई पडी है
बेजान आरजू की दीवार इक खडी है
जज़्बों के झरोखों में मकड़ी ने घर किया है

उम्मीद के महल जो गिरते हि जा रहे हैं
नाकामियों के बादल मंडराते आ रहे हैं
बेबस हवा के बस में सारा शहर किया है

टूटे हुए घरोंदे, रूठी हुई बहारें,
जलती जमीं को घेरे बढती हुई दरारें
अच्छे भले शहर को इक खंडहर किया है

ये दुआ है फिरसे इसकी तकदीर संवर जाए
कि बहार ता-क़यामत इस दिलमें ठहर जाए
मेरे रब, ये बयाबाँ अब उनकी नज़र किया है!!

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