रविवार, 5 अप्रैल 2009

सावन

फिर उमड़ घुमड़ बादल आए
अब बरसेंगे, कब बरसेंगे?
प्यासे की बुझेगी प्यास मगर
प्यासे दिल फिर भी तरसेंगे

जब सघन गगन पर नाचेगी
चमचम करती चंचल चपला,
बूंदों के घुंगरू टूटेंगे,
छम छम छम मोती बिखरेंगे

कोई मयूर पसारे पंख अपने,
हो भावविभोर पुकारेगा
मन झूमेगा, तन नाचेगा
नव रंग उमंग के छलकेंगे

बरसेगी घटा, तरसेगा जिया
परदेस बसे हो सांवरिया
बिन सावन अखियाँ बरस रही,
जाने कब ये दिन बदलेंगे

तन भीगा भीगा, मन प्यासा
सूनी राह तके व्याकुल नैना
घनश्याम बिना ये श्यामल घन
क्या बरसे हैं, क्या बरसेंगे?

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