गुरुवार, 25 जून 2009

मिल न सकेंगे

हम यूँ बिछड़ गए हैं के फिर मिल न सकेंगे
उम्मीद के चराग कभी जल न सकेंगे

क्या जाने किस कसूर की फूलों को सजा दी?
पतझड़ तो क्या, बहार में भी खिल न सकेंगे

कैसी कसम दिलाई है अश्कों को आपने?
चाहा भी तो आंखों से कभी ढल न सकेंगे

बिन आपके फिराक की रातें न कटेंगी
बिन आपके ये हिज्र के दिन ढल न सकेंगे

इस दिल में बनाया है हमने उनका आशियाँ,
वो चाहकर भी घर कभी बदल न सकेंगे

जज़्बात के पौधों को कहीं और लगा दो,
ऐ 'रूह', गम के साए में ये पल न सकेंगे

2 टिप्‍पणियां:

  1. इस दिल में बनाया है हमने उनका आशियाँ,
    वो चाहकर भी घर कभी बदल न सकेंगे ...
    For me these are d best lines ...

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  2. इस दिल में बनाया है हमने उनका आशियाँ,
    वो चाहकर भी घर कभी बदल न सकेंगे

    sahi!

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