शनिवार, 14 नवंबर 2009

राहें

आपके कहने पे हमने आपकी राहें चुनी
हाए, हमने क्या किया? आंसू चुने, आंहें चुनी

कुछ ग़लत वो फ़ैसले, कुछ कोशिशें नाकामसी,
कुछ बला की हसरतें, और कुछ ग़ज़ब चाहें चुनी

थी कहीं रंगीं बहारें और कहीं वीरानियाँ,
जिनसे कोई भी न गुजरा, हमने वो राहें चुनी

दर्द के मारे हुए, तकदीर से हारे हुए,
ज़िंदगी से बाज़ आए, मौत की बाँहें चुनी

अपनि तनहाई से डरके आ गए महफ़िल में हम,
'रूह' , अब पछता रहे हैं, क्यों ग़लत राहें चुनी?







1 टिप्पणी:

  1. अप्रतिम कविता. खूप आवडली.

    "कुछ बला की हसरतें, और कुछ ग़ज़ब चाहें चुनी"
    ह्यात 'और' च्या जागी 'औ', तसेच
    "थी कहीं रंगीन बहारें और कहीं वीरानियाँ"
    ह्यात 'रंगीन' ऐवजी 'रंगीं', व
    "अपनी तनहाई से डरके आ गए महफ़िल में हम"
    ह्यात 'अपनि' लिहावे असे सुचवावेसे वाटते.उर्दू शायरी देवनागरीत लिहिताना कधी कधी उच्चारानुसार लिहावी लागते. तसे न केल्यास वाचकाचा (विशेषत: मराठी वाचकांचा) वृत्तभंग झाल्याचा गैरसमज होण्याची शक्यता असते

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