रविवार, 29 नवंबर 2009

बिछड़ेंगे सभी

बिछड़ेंगे सभी बारी बारी, वो नहीं बिछडनेवालोंमें
दिल, जान, जिगर जिनके बसमें, अक्सर रहते जो खयालोंमें

न खुदा, न मसीहा, फ़रिश्ता नहीं, है सीदा-सादा इक इन्सां
है यकीन मगर उसके जैसा आता है हजारों सालोंमें !

न हमें है पता, न उन्हें है ख़बर, उनसे अपना रिश्ता क्या है
हम उनके तसव्वुर में खोये, वो गुम अपनेहि खयालोंमें !

वो हमारे हुए, पर मिल न सके, ता-उम्र तलाश रही उनकी
हमने जो जवाबोंमें ढूँढा, वो छुपकर बैठे सवालोंमें !

दिल तोड़ दिया है बहारों ने, फूलों ने दिए हैं ज़ख्म कई
काँटों को मला मरहम की जगह हमने पांवों के छालोंमें

न हिना की वो खुशबू हाथों में, न हया की वो लाली आँखों में,
न वो सूखे फूल किताबों में, न वो गुंचे छुपे रुमालोंमें

बीमार थे हम भी 'रूह' मगर, देखा हि नहीं चारागर ने,
रहबर ने ख़बर न ली अपनी, हम भी थे भटकनेवालोंमें

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