शनिवार, 30 जुलाई 2011

रोना


तेरे ईश्क की आजमाइश में रोना
कभी तुझको पाने की ख़्वाहिश में रोना!

लबों पे हंसी है दिखावे की खातिर,
छुपाये निगाहों की जुंबिश में रोना 

न रोने की हमने तो खाई थी कसमें,
पडा है मुहब्बत की साजिश में रोना 

पिघल जाये बुत वो, इसी आरज़ू में 
इबादत में रोना, परस्तिश में रोना!

दिल-ए-नातवांने नज़र की ज़ुबां से
सिखाया गमों की सिफ़ारिश में रोना 

कोई देख पाया नहीं आंसुओंको,
हमें रास आया है बारिश में रोना!

तेरे आंसुओंकी क़दर फिर भी की है,
बहोत खूब है ये नुमाइश में रोना!

ये रोना तो तकदीर है "रूह" की, दोस्त
मिला है ख़ुदा से ही बख़्शिश में रोना!

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