रविवार, 29 नवंबर 2009

बिछड़ेंगे सभी

बिछड़ेंगे सभी बारी बारी, वो नहीं बिछडनेवालोंमें
दिल, जान, जिगर जिनके बसमें, अक्सर रहते जो खयालोंमें

न खुदा, न मसीहा, फ़रिश्ता नहीं, है सीदा-सादा इक इन्सां
है यकीन मगर उसके जैसा आता है हजारों सालोंमें !

न हमें है पता, न उन्हें है ख़बर, उनसे अपना रिश्ता क्या है
हम उनके तसव्वुर में खोये, वो गुम अपनेहि खयालोंमें !

वो हमारे हुए, पर मिल न सके, ता-उम्र तलाश रही उनकी
हमने जो जवाबोंमें ढूँढा, वो छुपकर बैठे सवालोंमें !

दिल तोड़ दिया है बहारों ने, फूलों ने दिए हैं ज़ख्म कई
काँटों को मला मरहम की जगह हमने पांवों के छालोंमें

न हिना की वो खुशबू हाथों में, न हया की वो लाली आँखों में,
न वो सूखे फूल किताबों में, न वो गुंचे छुपे रुमालोंमें

बीमार थे हम भी 'रूह' मगर, देखा हि नहीं चारागर ने,
रहबर ने ख़बर न ली अपनी, हम भी थे भटकनेवालोंमें

शनिवार, 14 नवंबर 2009

राहें

आपके कहने पे हमने आपकी राहें चुनी
हाए, हमने क्या किया? आंसू चुने, आंहें चुनी

कुछ ग़लत वो फ़ैसले, कुछ कोशिशें नाकामसी,
कुछ बला की हसरतें, और कुछ ग़ज़ब चाहें चुनी

थी कहीं रंगीं बहारें और कहीं वीरानियाँ,
जिनसे कोई भी न गुजरा, हमने वो राहें चुनी

दर्द के मारे हुए, तकदीर से हारे हुए,
ज़िंदगी से बाज़ आए, मौत की बाँहें चुनी

अपनि तनहाई से डरके आ गए महफ़िल में हम,
'रूह' , अब पछता रहे हैं, क्यों ग़लत राहें चुनी?