गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

गुजरे ज़माने

बारहा गुजरे ज़माने ढूँढते हैं
तुमसे मिलने के बहाने ढूँढते हैं

क्या पता किस मोडपर मिल जाएगा वो?
गुमशुदा दिल को दिवाने ढूँढते हें

ये तो बस दीवानगी की इंतहा है
गूंगी गलियों में तराने ढूँढते हैं

छोड़कर अपना चमन, अपनी बहारें
वो बयाबाँ में ठिकाने ढूँढते हें

शबनमी यादों से भीगी चाँदनी में
हम वो बीते दिन सुहाने ढूँढते हैं

तिनके तिनके से जहाँ छलके वफाएं
"रूह" हम वो आशियाने ढूँढते हैं

मंगलवार, 7 अप्रैल 2009

दुआ

देना हो तो ऐसा दे या रब,
हर ग़म की दवा हम बन जाएँ
जो कबूल हो हर एक हालत में,
बस ऐसी दुआ हम बन जाएँ

चाहे मन्दिर हो चाहे मस्जिद हो,
गिरजाघर हो चाहे गुरुद्वारा
जो गूंजे सबके आँगन में,
वो तेरी सदा हम बन जाएँ

हम फूल की खुशबू बन जाएँ,
और बिखर जाएँ हर गुलशन में,
हर जख्म को जो छूकर भर दे,
वो बादेसबा हम बन जाएँ

हमसे न कभी कोई गलती हो,
नफ़रत से हमेशा दूर रहें
जोडे जो दिलों को आपस में,
वो खुदा की अदा हम बन जाएँ

पत्थर न बने हम रस्ते का,
जो चोट किसी को पहुंचाए,
रिश्तों में दरारें न हो जिसमें,
उस घर का पता हम बन जाएँ

ऐ रूह, दुआ हो कबूल तेरी,
दरबार में उसकी इंशा अल्लाह
न कभी भी खता हम बन जाएँ,
न किसीकी सजा हम बन जाएँ

रविवार, 5 अप्रैल 2009

ग़ज़ल

कैसे खिलेगा फूल वो टूटा जो शाख से?

मिल जाएगा वो खाक में, आया है खाक से

रंगीन हैं फिजाएं तुम्हारे विसाल से,

ग़मगीन हैं फिजाएं खयाल-ऐ-फिराक से

मर्जी तेरी है, तू कभी आए के न आए

आवाज दी है हमने तो उठउठके खाक से

हैरत से यूँ न देख हमें गैर नजर से

महफ़िल में तेरी आए हैं हम इत्तेफाक से

नादान है ये, जान भी दे देगा इश्क में,

इस दिल को कभी यूँ न सताना मजाक से

ऐ रूह, उसकी बेरुखी ने जान से मारा,

हम तो गए थे मिलने बड़े इश्तियाक से

सांझ

पवन के झोकों के संग संग गगन का लहराता आँचल
नदी की चंचल धारा में खनकती बूंदों की पायल
सलोनी सांझ के मुखड़े पे दमकती सूरज की लाली
रचाकर आयी आंखों में रात का हल्का सा काजल
दुल्हन के माथे पे सोहे चाँद का मद्धम सा टीका
निखारे रूप सुहागन का सुनहरे रंगभरे बादल
अगन है मन में मीठीसी, लगन प्रीतम से मिलने की
सजीली पलकों की झालर झुकी है लज्जा से बोझल
झील के उजले दर्पन में निहारे रूप अनोखा सा,
चली धीरे धीरे गोरी, लजाये, खाए सौ सौ बल
इसी सुरमई उजाले में डूब जाए मन की नैया
इसी चम्पई अंधेरे में मेरा भी जीवन जाए ढल

जुनून

मर्ज़ लाइलाज है तो चारागर करेगा क्या?
हम भटकना चाहेंगे तो राहबर करेगा क्या?
ज़िन्दगी है सांसभर, उम्रभर की मौत है,
सांसभर न जी सका, उम्रभर करेगा क्या?
जिसको ढूंढता हुआ दर-ब-दर फिरा है तू,
वो बना है अजनबी, ढूंढकर करेगा क्या?
आजतक झुका नहीं जो किसीके सामने,
सजदा तेरा ना करे, तो वो सर करेगा क्या?
बुत बना रहे कोई, और कोई रहे ख़फा़,
ये सफर का हाल है, हमसफ़र करेगा क्या?
मौत जब करीब हो, ज़िन्दगी रकीब हो,
और दवा बने जहर, तो जहर करेगा क्या?
ख़ुद खुदा से पूछ ले 'रूह' ये तेरा जुनून
उस खुदा के दिल पे भी कुछ असर करेगा क्या?

कायनात

कितनी मुद्दत के बाद फिर बहार आयी है
साथ अपने जो आपके पयाम लाई है

आपकी चाह ने इस दिल में घर बनाया है
आपके ख्वाबों ने पलकों में जगह पाई है

आप आयें तो फिजाओं में तराने गूंजे
और मौसम ने कोई मीठी ग़ज़ल गाई है

आप ही आप हो ख्वाबों में और खयालों में
दिल हमारा नहीं, ये आपकी परछाई है

इस से पहले तो कभी आपसे मिले भी न थे,
फिर भी लगता है की सदियों की शनासाई है

चंद लम्हों का रहा आपका वो साथ मगर,
ज़िंदगीभर की खुशी उस से हमने पाई है

'रूह' बेचैन रही आपसे मिलने के लिए
आपसे मिलके लगा, कायनात पाई है

शिकायत

ऐ सनम तुझसे ही करते हैं शिकायत तेरी
हमको बर्बाद न कर दे कहीं चाहत तेरी

हम तो बस शाम-ओ-सहर याद तुझे करते हैं
बेवफ़ा तू है, भूल जाना है आदत तेरी

ले गया छीनके तू मुझसे मेरा सब्र-ओ-करार,
फिर भी ये दिल है के करता है इबादत तेरी

तेरे बन्दे हैं, तुझे अपना खुदा मानते हैं
अपनी हर साँस को समझा है इनायत तेरी

दिल तेरा, हम भी तेरे, जान तेरी, रूह तेरी,
दिल की धड़कन है मेरे पास अमानत तेरी

मैं ही हूँ तुझमें और तू ही बसा है मुझमें,
'रूह' अब तुझसे करें कैसे शिकायत तेरी?

सावन

फिर उमड़ घुमड़ बादल आए
अब बरसेंगे, कब बरसेंगे?
प्यासे की बुझेगी प्यास मगर
प्यासे दिल फिर भी तरसेंगे

जब सघन गगन पर नाचेगी
चमचम करती चंचल चपला,
बूंदों के घुंगरू टूटेंगे,
छम छम छम मोती बिखरेंगे

कोई मयूर पसारे पंख अपने,
हो भावविभोर पुकारेगा
मन झूमेगा, तन नाचेगा
नव रंग उमंग के छलकेंगे

बरसेगी घटा, तरसेगा जिया
परदेस बसे हो सांवरिया
बिन सावन अखियाँ बरस रही,
जाने कब ये दिन बदलेंगे

तन भीगा भीगा, मन प्यासा
सूनी राह तके व्याकुल नैना
घनश्याम बिना ये श्यामल घन
क्या बरसे हैं, क्या बरसेंगे?

सरस्वती वंदना

मेरी यह रचना सरस्वती वंदना राग केदार में सजाई गयी है।

जयतु शारदे देवी, वीणा कर में साजे
शुभ्र वसन धारिणी माँ मयूर पर बिराजे

हे दयानिधान माते, मधुर धुन सुना दे
इस धरा को पावन कर स्वर्ग तू बना दे
वीणा के हर सुर से नादब्रम्ह जागे
शुभ्र वसन धारिणी माँ मयूर पर बिराजे

सुर, आलाप, काव्य, गान, सेवा ये हमारी
तेरा तुझको अर्पण, हम तो तेरे पुजारी
तेरी ज्ञानमहिमा से भुवनत्रय गाजे
शुभ्र वसन धारिणी माँ मयूर पर बिराजे

शनिवार, 4 अप्रैल 2009

ग़ज़ल

जिनको हम दोस्त अपनी जान से प्यारे समझे
अपने अश्कोंको वोही टूटते तारे समझे
सारे आलम में हमें चारागर कहीं न मिला,
हमने चाहा था कोई दर्द हमारे समझे
लब तो खामोश रहे, और जुबाँ भी न खुली
बात आंखों से हुई, दिल ने इशारे समझे
नाखुदा राज़ मेरे जानके अनजान बना
न है कश्ती को पता, और न किनारे समझे
मैं तो वाकिफ़ हूँ तेरे दिल की हर एक धड़कन से
काश तू भी तो कभी मेरे इशारे समझे
'रूह' वो बनके कहर टूट पड़े हैं हमपे,
जिनको हम अपनी मुसीबत के सहारे समझे

कुछ और बात थी

कभी हम भी थे दीवाने, वो कुछ और बात थी
हमसे ही थे ज़माने, वो कुछ और बात थी
हम जब भी हवाओंसे कहते थे दिल की बातें
बन जाते थे फंसाने, वो कुछ और बात थी
हम आंह अगर भरते, पिघलता था आसमां
बरसात के बहाने, वो कुछ और बात थी
रूठे कभी जो रहते थे हम अपने आप से ,
आता खुदा मनाने, वो कुछ और बात थी
छेडा जो साज़-ऐ-दिल तो गूंजती थी वादियाँ
गाती फ़िजा तराने, वो कुछ और बात थी
जब जिक्र हमसे होता था मीना-ओ-जाम का,
झूम उठते थे मयखाने, वो कुछ और बात थी
हमसे शुरू, हमीपे ख़तम होती थी कभी
दुनिया की दास्तानें, वो कुछ और बात थी
नाज़ अपने उठाता था जहाँ, और आज हम
जीते हैं ग़म उठाने, वो कुछ और बात थी
ऐ रूह, ये ग़ज़ल तो हुई बीता हुआ कल,
कल क्या हो कौन जाने? वो कुछ और बात थी