गुरुवार, 8 अक्तूबर 2009

खुली किताब


खुली किताब ज़िन्दगी, मगर नजर धुआँ धुआँ
पढोगे कैसे हमसफ़र मिटी हुई कहानियाँ?

लिखा था एक एक लफ़्ज आरजू़ के रंग से,
उडाए रंग वक़्त ने, गँवा दिया हर एक निशाँ
जिगर के कुछ कलाम थे किताब में छुपे हुए,
सवाल कुछ, जवाब कुछ भटक रहे यहाँ वहाँ
खु़तू़त कुछ सम्हालके रखे हुए थे, जल गए
सबूत मिट गए मगर वजूद खू़न में रवां!

फटी किताब तार-तार है कटी पतंग सी
हवा उडाके ले गयी, पता नहीं गिरे कहाँ!

जरूर कुछ तो बात है कि 'रूह' की किताब का
हर एक हर्फ़ मिटके भी हिला रहा है आसमाँ!

6 टिप्‍पणियां:

  1. सुरमयी रात ढलती जाती है , रुह गम से पिघलती जाती है
    तेरी झुल्फोसे प्यार कौन करे अब तेरा इंतजार कौन करे

    तलत ने गायलेले हे गाणे याद आले

    जवाब देंहटाएं
  2. जरूर कुछ तो बात है कि 'रूह' की किताब का
    हर एक हर्फ़ मिटके भी हिला रहा है आसमाँ!
    kya bat hai Kranteeji cha gayee aap.

    जवाब देंहटाएं